मैं हूँ ऐसा अन्जान पथिक
जो अँधेरे में चला जा रहा है।
अपनी आशाओं , निराशाओं के साथ
प्रकाश की आस में बहा जा रहा है।
मन में बारम्बार विचार उठता है
क्या मेरी राह है सही ,
मंजिल से अनभिज्ञ,
पैर हैं कि रुकते नहीं।
एक पल रुकना, फिर सोचना
किस राह पर चलें किस पर नहीं।
यथार्थ में जीता हूँ मगर कल्पनाएँ फिर भी साथ हैं,
सोचने करने को बहुत कुछ मगर संघर्ष भी साथ है।
दुसरे के जीवन को आदर्श बनाकर,
उसमे जीना अत्यंत कठिन है।
अपनी वेदनाओं और विचारों से सिद्धांत बनाकर,
उनके विरुद्ध लड़ना अत्यंत कठिन है।
जीवन एक जंतर मंतर है,
कई अन्जान रास्तों में घोर समर है।
यहाँ धूप, क्षाऊँ, सुख, दुःख सभी हैं,
सहचरों से प्यार, सम्मान सभी कुछ मिला है।
दिल और दिमाग के बीच फिर भी कुछ अंतर है।
रास्तों में खो जाने का निरंतर डर है,
मेरा जीवन निरूद्देश, ऐसे जीवन का मैं प्रार्थी नहीं।
संकटों का स्वागत लेकिन लड़ने को हथियार नहीं,
सृजन करने की चाहत लेकिन उसका साहस नहीं।
ऐसी धुंध में मैं खोना नहीं चाहता,
धुंध के आगे धुंध कुछ भी स्पष्ट नहीं होता,
मन मैं उसी राह पर चलूँ जिसमें मुझे विशवास हो,
उसी मंजिल पर पहूंचूं जहाँ मेरी आत्मा साथ हो।
जो अँधेरे में चला जा रहा है।
अपनी आशाओं , निराशाओं के साथ
प्रकाश की आस में बहा जा रहा है।
मन में बारम्बार विचार उठता है
क्या मेरी राह है सही ,
मंजिल से अनभिज्ञ,
पैर हैं कि रुकते नहीं।
एक पल रुकना, फिर सोचना
किस राह पर चलें किस पर नहीं।
यथार्थ में जीता हूँ मगर कल्पनाएँ फिर भी साथ हैं,
सोचने करने को बहुत कुछ मगर संघर्ष भी साथ है।
दुसरे के जीवन को आदर्श बनाकर,
उसमे जीना अत्यंत कठिन है।
अपनी वेदनाओं और विचारों से सिद्धांत बनाकर,
उनके विरुद्ध लड़ना अत्यंत कठिन है।
जीवन एक जंतर मंतर है,
कई अन्जान रास्तों में घोर समर है।
यहाँ धूप, क्षाऊँ, सुख, दुःख सभी हैं,
सहचरों से प्यार, सम्मान सभी कुछ मिला है।
दिल और दिमाग के बीच फिर भी कुछ अंतर है।
रास्तों में खो जाने का निरंतर डर है,
मेरा जीवन निरूद्देश, ऐसे जीवन का मैं प्रार्थी नहीं।
संकटों का स्वागत लेकिन लड़ने को हथियार नहीं,
सृजन करने की चाहत लेकिन उसका साहस नहीं।
ऐसी धुंध में मैं खोना नहीं चाहता,
धुंध के आगे धुंध कुछ भी स्पष्ट नहीं होता,
मन मैं उसी राह पर चलूँ जिसमें मुझे विशवास हो,
उसी मंजिल पर पहूंचूं जहाँ मेरी आत्मा साथ हो।
Hi buddy keep writing its a nice one
ReplyDelete