लगता है सब पुूर्ण सम्पूर्ण
इधर उधर बहुत कुछ
मगर कुछ भी पूर्ण नहीं होता
होता है सब आधा अधूरा
आँखों कि कल्पना मात्र
या कहें ज्ञान कि कमी
जो लगता है सब पूूर्ण सम्पूर्ण
कुछ कहने पर कुछ सुनने पर
बात भी काट छांट कर होती है लगभग
कोई शब्द वयर्थ लगे कोई अक्षुण्य लगे
उसे हटाकर वाक्य कर दिया लगभग!
प्रशंसा लगभग, द्रेष लगभग
जो लजजित न करे, निंदनीय न बनाये
जो विचारों में तो पूर्ण, किन्तु जिह्वा पर लगभग!
ऊंचाईं कि क्या सीमायें निष्चित करे
ऊंचाई जो अनंत है, विमाविहीन है
हिमालय कि ऊंचाई सीमान्त है, सम्पूर्ण नहीं
यह ऊंचाई का उदहारण है परिभाषा नहीं
हिमालय से बहती गंगा की धार अपार
निश्छल जल स्वामिनी पवित्रता का सार
अपना प्रलयकारी स्वरुप त्याग कर वरदायनी बनकर
अपने अस्तित्तव के लगभग से ही तृप्त कर देती है!
जब लगभग से ही जीवन तृप्त, तो पूर्णता कि तृषणा क्यों,
जीवन का उद्देशय लगभग, तो सर्वस्य पाने की चाहत क्यों!
लगभग में ही जीवन का सार है, मृत्यु पर मोक्ष है,
सम्पूर्णता में होकर भी सब तरफ विक्षोभ है,
जगत का आदि लगभग, अन्त लगभग
हमारा सोचना, करना, बोलना, लगभग
प्रकृति कि सुंदरता लगभग, पृथ्वी पर जीवन लगभग
दीर्घकालीन भी अतिदीर्घा के बाद अल्प है
लगभग ही सम्पूर्णता का दूसरा विकल्प है!
हम अपने लगभग में ही पूर्णता को खोजें
लगभग को कम नहीं, पर पूर्ण ही समझें!
लगभग में प्रेरणा, उत्सुकता, चिन्ता,तलाश है
जीवन के सब गुण, अवगुण इसमें विद्ध्मान हैं,
सम्पूर्णता एक शब्द मात्र, विचारों कि अभिवयक्ति का माधयम है
लगभग ही स्वीकार्य सच्चाई, यथार्थ का मर्म है!
इधर उधर बहुत कुछ
मगर कुछ भी पूर्ण नहीं होता
होता है सब आधा अधूरा
आँखों कि कल्पना मात्र
या कहें ज्ञान कि कमी
जो लगता है सब पूूर्ण सम्पूर्ण
कुछ कहने पर कुछ सुनने पर
बात भी काट छांट कर होती है लगभग
कोई शब्द वयर्थ लगे कोई अक्षुण्य लगे
उसे हटाकर वाक्य कर दिया लगभग!
प्रशंसा लगभग, द्रेष लगभग
जो लजजित न करे, निंदनीय न बनाये
जो विचारों में तो पूर्ण, किन्तु जिह्वा पर लगभग!
ऊंचाईं कि क्या सीमायें निष्चित करे
ऊंचाई जो अनंत है, विमाविहीन है
हिमालय कि ऊंचाई सीमान्त है, सम्पूर्ण नहीं
यह ऊंचाई का उदहारण है परिभाषा नहीं
हिमालय से बहती गंगा की धार अपार
निश्छल जल स्वामिनी पवित्रता का सार
अपना प्रलयकारी स्वरुप त्याग कर वरदायनी बनकर
अपने अस्तित्तव के लगभग से ही तृप्त कर देती है!
जब लगभग से ही जीवन तृप्त, तो पूर्णता कि तृषणा क्यों,
जीवन का उद्देशय लगभग, तो सर्वस्य पाने की चाहत क्यों!
लगभग में ही जीवन का सार है, मृत्यु पर मोक्ष है,
सम्पूर्णता में होकर भी सब तरफ विक्षोभ है,
जगत का आदि लगभग, अन्त लगभग
हमारा सोचना, करना, बोलना, लगभग
प्रकृति कि सुंदरता लगभग, पृथ्वी पर जीवन लगभग
दीर्घकालीन भी अतिदीर्घा के बाद अल्प है
लगभग ही सम्पूर्णता का दूसरा विकल्प है!
हम अपने लगभग में ही पूर्णता को खोजें
लगभग को कम नहीं, पर पूर्ण ही समझें!
लगभग में प्रेरणा, उत्सुकता, चिन्ता,तलाश है
जीवन के सब गुण, अवगुण इसमें विद्ध्मान हैं,
सम्पूर्णता एक शब्द मात्र, विचारों कि अभिवयक्ति का माधयम है
लगभग ही स्वीकार्य सच्चाई, यथार्थ का मर्म है!
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